कांग्रेस ने आतंकवाद को धार्मिक नाम देकर घृणित अपराध किया : इंद्रेश कुमार
शब्दवाणी सम्माचार टीवी, शनिवार 2 अगस्त 2025 (प्रबंध सम्पादकीय श्री अशोक लालवानी 8803818844), नई दिल्ली। देश में आपसी समझ, भाईचारा और राष्ट्रीय एकता को बढ़ावा देने की दिशा में एक ऐतिहासिक कदम उठा। गुरुवार शाम नई दिल्ली के हरियाणा भवन में मुस्लिम पत्रकारों और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) के वरिष्ठ नेताओं के बीच एक महत्वपूर्ण बैठक हुई। इस बैठक का थीम था संवाद से समाधान जिसका उद्देश्य न केवल मतभेदों को दूर करना था, बल्कि एक मजबूत, एकजुट और समावेशी भारत के निर्माण की दिशा में ठोस कदम उठाना था। इसमें करीब 50 प्रतिष्ठित मुस्लिम पत्रकार शामिल हुए, जिनमें प्रिंट, इलेक्ट्रॉनिक, डिजिटल और उर्दू अखबार के बड़े नाम थे। यह बैठक न सिर्फ विचारों का आदान-प्रदान थी, बल्कि एक सांस्कृतिक और वैचारिक सेतु थी, जो भारत की विविधता में एकता की भावना को मजबूत करती है। यह बैठक राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर के प्रमुख मीडिया संस्थानों — जैसे ANI, PTI, India TV, ABP News, DD News, NDTV, ज़ी न्यूज़, DW, Voice of America — और उर्दू की प्रमुख प्रकाशन संस्थाओं जैसे इंक़लाब, सहाफ़त, सायबान, सियासी तक़दीर — से जुड़े पत्रकारों को एक मंच पर लेकर आई। इसने राष्ट्रीय विमर्श में मीडिया की भूमिका पर गंभीर मंथन और संवाद के लिए एक गहन मंच प्रदान किया।
आयोजन और प्रमुख व्यक्तित्व
इस कार्यक्रम का आयोजन मुस्लिम राष्ट्रीय मंच (MRM) ने किया, जो RSS के सहयोग से सामाजिक समरसता और सांप्रदायिक सौहार्द को बढ़ावा देने का काम करता है। बैठक की अध्यक्षता RSS के वरिष्ठ प्रचारक और राष्ट्रीय कार्यकारिणी सदस्य इंद्रेश कुमार ने की। उनके साथ मंच के प्रमुख राष्ट्रीय संयोजक प्रो. शाहिद अख्तर, राष्ट्रीय मीडिया प्रभारी शाहिद सईद, महिला विंग प्रभारी डॉ. शालिनी अली जैसे प्रभावशाली चेहरे मौजूद थे। पत्रकारों ने अपनी बेबाक राय और सुझावों से इस संवाद को जीवंत बनाया। बैठक में अनिल गर्ग, डॉक्टर शाइस्ता और शाकिर हुसैन भी मौजूद रहे। यह बैठक एक औपचारिक चर्चा नहीं थी। यह एक ऐसी पहल थी, जिसने सदियों पुरानी गलतफहमियों को दूर करने और भारत की सांस्कृतिक एकता को नया आयाम देने का प्रयास किया। यह "विविधता में एकता" की भारतीय भावना को साकार करने की दिशा में एक मजबूत कदम था।
पत्रकारिता की नई दिशा : शाहिद सईद
अपने उद्घाटन संबोधन में शाहिद सईद ने पत्रकारिता की भूमिका और जिम्मेदारी पर गहरे सवाल उठाए। उन्होंने कहा, "जब दुनिया का एक बड़ा हिस्सा युद्ध, हिंसा और अशांति में उलझा है, भारत एक अनोखा देश है जो शांति, संवाद और सह- अस्तित्व की मशाल थामे हुए है। यह हमारी सभ्यता और संस्कृति की ताकत है। उन्होंने पत्रकारों से अपील की कि वे सिर्फ खबरें दिखाने तक सीमित न रहें, बल्कि समाज को सही दिशा देने में योगदान दें। "पत्रकारिता का काम केवल सूचनाएं देना नहीं, बल्कि समाज के लिए एक रास्ता बनाना है। हमें अपनी कलम को हथियार नहीं, बल्कि एक सेतु बनाना है—जो समाज, संस्कृति और विचारों को जोड़े।" उन्होंने यह भी जोड़ा कि पत्रकारों को अब सिर्फ खबरों के वाहक नहीं, बल्कि राष्ट्र निर्माण और सामाजिक बदलाव के भागीदार बनना होगा।
इंद्रेश कुमार : संवाद है भारत निर्माण का आधार
RSS के वरिष्ठ नेता इंद्रेश कुमार ने अपने प्रेरणादायी संबोधन में संवाद की ताकत को भारत के भविष्य का आधार बताया। उन्होंने कहा, "संवाद से न केवल समस्याओं का समाधान होता है, बल्कि भारत का निर्माण भी होता है। हम कोई समाचार एजेंसी नहीं, बल्कि राष्ट्र निर्माण के कार्यकर्ता हैं।" उनके शब्दों में एक गहरी दृढ़ता थी, जो यह संदेश देती थी कि सामाजिक समरसता, सांप्रदायिक सौहार्द और साझा भविष्य के लिए संवाद ही सबसे बड़ा माध्यम है। उन्होंने RSS प्रमुख डॉ. मोहन भागवत की हाल ही में इस्लामी विद्वानों और उलेमाओं से हुई मुलाकात का जिक्र किया। उन्होंने इसे "भारत की आत्मा को जोड़ने वाला प्रयास" बताया, जिसमें हजारों वर्षों की सांस्कृतिक विविधता को एकजुट करने की भावना थी। इंद्रेश कुमार ने पत्रकारों को "राष्ट्र के शिल्पकार" की संज्ञा दी और कहा, "सच्ची पत्रकारिता, खुला संवाद और एकजुट प्रयासों से ही एक शांतिपूर्ण, समावेशी और शक्तिशाली भारत बन सकता है। उन्होंने पत्रकारों को चेतावनी भी दी कि अगर वे सिर्फ नकारात्मकता, सनसनी और टीआरपी की दौड़ में उलझे रहे, तो समाज का ताना-बाना कमजोर हो सकता है। उन्होंने कहा, "पत्रकार सिर्फ सत्ता के आलोचक नहीं, बल्कि समाज के मार्गदर्शक भी बनें। अपनी कलम को विवाद फैलाने का हथियार नहीं, बल्कि विकास और एकता की आवाज बनाएं।" उनके इस संदेश ने न केवल RSS की विचारधारा को दर्शाया, बल्कि भारत के संवैधानिक मूल्यों और साझी विरासत को भी रेखांकित किया।
शाहिद अख्तर: मुस्लिम और भारत का विकास एक साथ
प्रो. शाहिद अख्तर ने अपने संबोधन में मुस्लिम समुदाय और भारत के विकास को एक-दूसरे से जोड़ा। उन्होंने कहा, "मुस्लिम समुदाय का सामाजिक, शैक्षिक और आर्थिक सशक्तिकरण भारत की ताकत को और बढ़ाएगा।" उन्होंने मुस्लिम मीडिया से अपील की कि वह सिर्फ समस्याओं को उजागर करने तक सीमित न रहे, बल्कि समाधान और संभावनाओं को भी सामने लाए। उन्होंने कहा मीडिया को समाज की सच्ची आवाज बनना होगा—ऐसी आवाज जो न केवल पीड़ा और उपेक्षा को दिखाए, बल्कि उम्मीद और आत्मविश्वास का रास्ता भी बनाए।" उन्होंने यह भी जोर दिया कि मीडिया को नीति-निर्माण में सकारात्मक भूमिका निभानी चाहिए और समाज के लिए एक ऐसा आईना बनना चाहिए, जिसमें भारत के मुसलमान अपने अतीत, वर्तमान और भविष्य को स्पष्ट रूप से देख सकें।
पत्रकारों की बेबाक राय:
बैठक में पत्रकारों ने खुलकर अपनी बात रखी और कई अहम मुद्दों पर चर्चा की। कुछ प्रमुख प्रतिक्रियाएं: रूमान हाशमी (लोक स्वामी): "हम पहले पत्रकार हैं, फिर मुसलमान। अगर हम जमीनी सच्चाई नहीं दिखाएंगे, तो सरकार समाधान कैसे देगी? आशिक हुसैन (ANI): "संघ का यह संवाद काबिल-ए-तारीफ है, लेकिन इसे गांव-गांव तक ले जाना होगा, क्योंकि कई स्थानों पर देखा गया है कि दो समुदायों के बीच एक्सट्रीम डिफरेंसेज हैं जिसे संवाद से समाधान की जरूरत है। हसन शुजा (सहाफत और अवाम-ए-हिंद): "उर्दू मीडिया पीछे क्यों है? जब बाकी क्षेत्रों में प्रगति हो रही है, तो उर्दू पत्रकारिता को सरकारी सहयोग क्यों नहीं? खालिद रजा (भारत एक्सप्रेस): "मुस्लिम पत्रकार सिर्फ मुस्लिम समाज की नहीं, बल्कि पूरे भारत की आवाज हैं। हमें अपने मूल्यों से समझौता नहीं करना चाहिए। मारूफ रजा (मीडिया 24x7): "उर्दू मीडिया को बचाने के लिए सरकार और संघ को अलग विज्ञापन नीति बनानी चाहिए। ए यू आसिफ: "हमें सिर्फ शांति नहीं, बल्कि न्याय और बराबरी चाहिए। मीडिया इसके लिए सबसे बड़ा हथियार है। अंजुम जाफरी (कौमी भारत): "मुस्लिम मीडिया को तकनीकी रूप से मजबूत करने की जरूरत है, ताकि यह नई पीढ़ी से जुड़ सके। वैश्विक और सामाजिक मुद्दों पर खुली चर्चा हुई। जिसमें कई संवेदनशील और जटिल मुद्दों पर खुलकर बात हुई। इनमें शामिल थे।
अंतरराष्ट्रीय मुद्दे: रूस-यूक्रेन युद्ध, इजराइल-फिलिस्तीन विवाद, पाकिस्तान-अफगानिस्तान और ईरान-सीरिया जैसे मसले। भारत के सामाजिक मुद्दे: मॉब लिंचिंग, मंदिर-मस्जिद विवाद, गाय और इंसान की संवेदनशीलता जैसे विषय।
मीडिया से जुड़े सवाल: उर्दू मीडिया को सरकारी विज्ञापनों में कम हिस्सेदारी, ग्रामीण स्तर पर प्रतिनिधित्व की कमी, और राष्ट्रीय मुख्यधारा में मुस्लिम पत्रकारों को शामिल करने की जरूरत। पत्रकारों ने मांग की कि उर्दू मीडिया को तकनीकी और आर्थिक सहयोग मिले, ताकि यह डिजिटल युग में अपनी प्रासंगिकता बनाए रखे। साथ ही, उन्होंने यह भी कहा कि मुस्लिम पत्रकारों को राष्ट्रीय मंचों पर ज्यादा अवसर दिए जाएं, ताकि उनकी आवाज मुख्यधारा में सुनी जाए।
मीडिया की महफिल
इस बैठक में कई बड़े पत्रकार शामिल हुए, जिनमें शामिल थे: आशिक हुसैन (ANI), हसन शुजा (सहाफत और अवाम-ए-हिंद), जावेद रहमानी (सायबान), शोएब रज़ा (इंडिया टीवी), शहला निगार (डीडी न्यूज), अखलाक उस्मानी (ABC National News), मोहम्मद रहमतुल्लाह (कौमी तंजीम), मारूफ रजा (मीडिया 24x7), खालिद रजा (भारत एक्सप्रेस), खालिद वसीम (सच के सिपाही), सुहैल अंजुम (वॉयस ऑफ अमेरिका उर्दू), शुजा (PTI), जावेद अख्तर (DW), शम्स तबरेज (मिल्लत टाइम्स), मदीहा खान (ABP News), खुर्शीद रब्बानी (मुंसिफ टीवी), अंजुम जाफरी (कौमी भारत), सैयद मोबश्शिर (Zee), मुस्तकीम खान (सियासी तकदीर), ए यू आसिफ (वरिष्ठ पत्रकार), मुन्ने भारती (एनडीटीवी), साउथ एशिया न्यूज समेत लगभग 50 पत्रकार थे।
नया भारत, नई दिशा
यह बैठक कोई साधारण आयोजन नहीं थी। यह भारत की आत्मा को जोड़ने की एक सशक्त कोशिश थी। इसने दिखाया कि जब लोग बिना किसी संकोच के अपनी बात रखते हैं और एक-दूसरे को सुनते हैं, तो टकराव नहीं, बल्कि समरसता पैदा होती है। यह एक नए युग की शुरुआत थी, जहां मतभेदों को समस्या नहीं, बल्कि संभावनाओं की शुरुआत के रूप में देखा गया। इस संवाद ने साबित किया कि राष्ट्र निर्माण की पहली शर्त है—सुनना, समझना और साझा समाधान ढूंढना। अब जरूरत है इस आवाज को हर गली, हर गांव और हर न्यूज़रूम तक पहुंचाने की, ताकि यह संदेश गूंजे, "संवाद ही संकल्प है, और संकल्प ही राष्ट्र का स्वरूप है।" बैठक ने न केवल एक सकारात्मक माहौल बनाया, बल्कि यह भी दिखाया कि जब मीडिया, संगठन और समाज साथ मिलकर काम करते हैं, तो एक मजबूत और समावेशी भारत का सपना साकार हो सकता है।
मालगांव ब्लास्ट केस
2008 मालेगांव ब्लास्ट केस में सभी आरोपियों को बरी किए जाने पर आरएसएस नेता इंद्रेश कुमार ने कहा, "लंबे संघर्ष के बाद अंततः एनआईए कोर्ट ने उन नेताओं को आईना दिखाया जिन्होंने 'भगवा और हिंदू आतंकवाद' की साजिश रची थी। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि उन्होंने असंवैधानिक, अमानवीय और यातनापूर्ण कार्य किए। निर्दोषों को बरी किया गया है। यह भी परोक्ष रूप से कहा गया कि इस साजिश को रचने वाले ही दोषी हैं। मुझे लगता है कि जिन्होंने यह साजिश रची, उनका कृत्य घृणित, अमानवीय और अत्याचार से भरा था। ऐसे नेताओं और पार्टियों को देश की जनता और कानून के द्वारा सबक सिखाया जाना चाहिए। उन्होंने यह भी कहा भगवा और हिंदू कभी आतंक नहीं था... देश और दुनिया में यह चर्चा चल रही है कि आतंकवाद का कोई धर्म नहीं होता। जब पहलगाम में बर्बर आतंकी हमला हुआ, तब सभी ने कहा कि इसे धार्मिक रंग न दिया जाए। लेकिन कांग्रेस ने आतंकवाद को धार्मिक नाम देकर एक घृणित अपराध किया। यह एक दंडनीय अपराध है।
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