रियल एस्टेट में वास्तुशास्त्र की भूमिका
शब्दवाणी सम्माचार टीवी, शुक्रवार 5 सितम्बर 2025 (प्रबंध सम्पादकीय श्री अशोक लालवानी 8803818844), नई दिल्ली। भारत की अर्थव्यवस्था के बड़े और अहम हिस्सों में से एक है रियल एस्टेट सेक्टर, जो शहरों की पहचान बनाता है और विकास को आगे बढ़ाता है। लेकिन डेवलपर्स को अक्सर ज़मीन हासिल करने संबंधी विवादों, सरकारी मंज़ूरी में देरी, अधूरे पड़े प्रोजेक्ट्स, बिक्री की दिक्कतें और कानूनी मामलों जैसी समस्याओं का सामना करना पड़ता है। आमतौर पर इन परेशानियों की वजह सरकारी नियम, पैसों की कमी या बाज़ार की मंदी मानी जाती है, लेकिन अब एक नया नज़रिया सामने आ रहा है, जो कहता है कि इन दिक्कतों की जड़ वास्तुशास्त्र हो सकता है, जो आर्किटेक्चर और ऊर्जा के संतुलन से संबंधित प्राचीन भारतीय विज्ञान है। वास्तुरविराज के सीएमडी रविराज अहिरराव के अनुसार, “मेरे 27 साल के अनुभव में, मैंने बार-बार देखा है कि रियल एस्टेट प्रोजेक्ट्स की कई पुरानी दिक्कतें वास्तु दोषों से जुड़ी होती हैं। जब इनका समाधान वैज्ञानिक तरीकों से किया जाता है, और वह भी बिना इमारत में कोई तोड़फोड़ किए, तो प्रोजेक्ट्स बेहतर तरीके से आगे बढ़ते हैं, बिक्री बढ़ती है और हितधारकों के बीच तालमेल भी अच्छा हो जाता है।
वास्तुशास्त्र इमारतों को इस तरह बनाने पर ज़ोर देता है कि वे प्रकृति की ताकत के साथ संतुलन में रहें। इसमें पांचों तत्वों पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु और आकाश का सही मेल बहुत ज़रूरी माना जाता है। अगर रियल एस्टेट प्रोजेक्ट्स में इन नियमों को नज़रअंदाज़ किया जाता है, तो अक्सर उन्हें योजना और कामकाज में रुकावटों का सामना करना पड़ता है। जैसे, ज़मीन के उत्तर-पश्चिम हिस्से में गड़बड़ी होने पर ज़मीन के अधिग्रहण से जुड़े विवाद खड़े हो सकते हैं। इसी प्रकार, मंज़ूरी लेने में दिक्कतें ज़्यादातर उत्तर-पश्चिम और दक्षिण-पूर्व हिस्सों की गड़बड़ियों से जुड़ी होती हैं। यहां तक कि जब डेवलपर्स के पास पर्याप्त संसाधन धन, सामग्री और श्रम मौजूद होते हैं, तब भी प्रोजेक्ट बिना किसी स्पष्ट कारण के अटक सकते हैं, यदि उत्तर, उत्तर-पूर्व या पूर्व दिशा अवरुद्ध या असंतुलित हो। सेल्स और मार्केटिंग में भी वास्तु का ध्यान रखना बहुत ज़रूरी होता है। उत्तर से पूर्व दिशा तक का क्षेत्र अच्छा माना जाता है, यहां से सकारात्मक ऊर्जा मिलती है। इससे खरीदार जल्दी फैसला लेते हैं और मांग बनी रहती है। लेकिन अगर दक्षिण, दक्षिण-पश्चिम या पश्चिम दिशा में कोई वास्तु दोष हो, तो बिक्री की गति धीमी हो सकती है। सिर्फ इमारत की बनावट ही नहीं, बल्कि वास्तुशास्त्र ठेकेदारों, आर्किटेक्ट्स और सेवा प्रदाताओं के बीच तालमेल सुनिश्चित करने में भी अहम भूमिका निभाता है। अगर इन लोगों में आपसी तालमेल नहीं होगा, तो अच्छे और मजबूत वित्तीय स्थिति वाले प्रोजेक्ट भी देरी और झगड़ों में फंस सकते हैं।
हर रियल एस्टेट प्रोजेक्ट के बीच में एक खास जगह होती है, जिसे ब्रह्मस्थान या केंद्रीय क्षेत्र कहते हैं, जो आकाश तत्व का प्रतीक माना जाता है। यही क्षेत्र पूरे प्रोजेक्ट और हितधारकों को जोड़कर रखता है। लेकिन आजकल ज़्यादातर प्रोजेक्ट्स (लगभग 90%) में यह हिस्सा बिगड़ जाता है। इसकी वजह से दिशाओं का संतुलन टूट जाता है और प्रोजेक्ट अपने लक्ष्य तक नहीं पहुंच पाता। अगर वास्तु के नियमों को नज़रअंदाज़ किया जाए, तो कई दिक्कतें सामने आती हैं—जैसे कानूनी परेशानियां, खराब पहुंच मार्ग, साइट पर नकारात्मक माहौल और बार-बार मजदूरों की समस्याएं। यही वजह है कि सबसे अच्छे और संभावनाशील प्रोजेक्ट भी खतरे में पड़ सकते हैं। पिछले लगभग तीन दशकों से वास्तुरविराज डेवलपर्स को वैज्ञानिक तरीके से वास्तु की जांच कर रहा है और उसके समाधान उपलब्ध करा रहा है। दुनिया भर में 2,000 से ज्यादा सफल रियल एस्टेट प्रोजेक्ट्स में यह संस्था काम कर चुकी है। साथ ही, यह डेवलपर्स को वास्तु अनुपालन प्रमाणपत्र भी देती है, जिससे उन्हें भरोसा मिलता है कि उनके प्रोजेक्ट्स उन छिपे हुए खतरों से सुरक्षित हैं, जो समय पर काम पूरा करने और मुनाफे को प्रभावित कर सकते हैं। प्राचीन ज्ञान और आधुनिक रियल एस्टेट के तरीकों को जोड़कर, वास्तुशास्त्र आज सिर्फ एक सांस्कृतिक धरोहर ही नहीं बल्कि एक मजबूत फ्रेमवर्क भी बन चुका है। इससे उद्योग को टिकाऊ, संतुलित और फायदे वाला विकास करने में मदद मिलती है।
टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें