नाबार्ड समर्थित दीवाली हाट 2025 का रंगारंग समापन समारोह सम्पन्न
शब्दवाणी सम्माचार टीवी, बुधवार 29 अक्टूबर 2025 (प्रबंध सम्पादकीय श्री अशोक लालवानी 8803818844), नई दिल्ली। दस दिवसीय दिवाली हाट 2025, जिसे नाबार्ड (NABARD) के सहयोग से आयोजित किया गया था, आज एम्पोरिया कॉम्प्लेक्स, कनॉट प्लेस में एक रंगारंग समापन समारोह के साथ सफलतापूर्वक संपन्न हुआ। इस आयोजन ने भारत की समृद्ध हस्तशिल्प परंपराओं और ग्रामीण उद्यमिता की भावना का उत्सव मनाया। कार्यक्रम की शोभा बढ़ाने वाले प्रमुख अतिथियों में श्री राजेश कुमार, महाप्रबंधक एवं संयोजक, एसएलबीसी दिल्ली, और श्री पुनित जैन, निदेशक, एनआईबीएसकॉम सहित बैंकिंग क्षेत्र तथा केंद्र एवं राज्य सरकार के वरिष्ठ अधिकारी शामिल थे। देशभर से आए शिल्पकारों को उनके उत्कृष्ट कार्य और भागीदारी के लिए प्रशस्ति पत्र प्रदान किए गए।
इस अवसर पर श्री नवीन कुमार रॉय, महाप्रबंधक/प्रभारी अधिकारी, नाबार्ड, नई दिल्ली क्षेत्रीय कार्यालय ने कहा कि नाबार्ड निरंतर ग्रामीण शिल्पकारों के सशक्तिकरण, भौगोलिक संकेतक (GI) आधारित आजीविकाओं के संवर्धन और जमीनी स्तर पर उद्यमिता को बढ़ावा देने के लिए कार्यरत है। उन्होंने यह भी उल्लेख किया कि दिवाली हाट 2025 ने “विकसित भारत” की भावना को साकार करते हुए पारंपरिक कौशलों को आधुनिक बाजारों से जोड़ने और एक आत्मनिर्भर ग्रामीण भारत के निर्माण की दिशा में महत्वपूर्ण कदम रखा है। हरियाणा, महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश और पश्चिम बंगाल से आए शिल्पकारों ने अपने भावपूर्ण अनुभव साझा किए। उन्होंने इस अवसर के लिए आभार व्यक्त किया जिसने उन्हें पहली बार इतने बड़े मंच पर अपने उत्पाद प्रदर्शित करने का अवसर दिया। कई शिल्पकारों ने बताया कि उपभोक्ताओं से सीधे संवाद करने से उन्हें उचित मूल्य निर्धारण और बिचौलियों को हटाने के लाभ समझने में मदद मिली।
15 से 25 अक्टूबर 2025 तक आयोजित इस प्रदर्शनी में 21 राज्यों से आए 100 से अधिक शिल्पकारों ने भाग लिया। इसमें भौगोलिक संकेतक (GI) और पारंपरिक ग्रामीण उत्पादों की आकर्षक प्रदर्शनी लगाई गई। प्रदर्शनी के दौरान ₹60 लाख से अधिक की बिक्री दर्ज की गई, जो उपभोक्ताओं में स्वदेशी, हस्तनिर्मित और पर्यावरण-अनुकूल उत्पादों की बढ़ती लोकप्रियता को दर्शाती है, जो सरकार की “वोकल फॉर लोकल” पहल के अनुरूप है। दिवाली हाट 2025 की सफलता नाबार्ड की इस प्रतिबद्धता का प्रमाण है कि वह भारत की पारंपरिक शिल्प विरासत को संरक्षित रखते हुए समावेशी और सतत आजीविकाओं को बढ़ावा दे रहा है। परंपरा को आधुनिकता से, और संस्कृति को व्यापार से जोड़ते हुए यह आयोजन सचमुच आत्मनिर्भर और विकसित भारत की उस राह को आलोकित करता है, जहाँ ग्रामीण कारीगरी भारत की प्रगति गाथा का अभिन्न हिस्सा बनी रहती है।



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