इसोफेगल स्टेंटिंग चिकित्सा प्रक्रिया मरीजों के लिए जीवनरक्षक

शब्दवाणी सम्माचार टीवी, बुधवार 30 अप्रैल 2025 (प्रबंध सम्पादकीय श्री अशोक लालवानी 8803818844), जयपुर। इसोफेगल स्टेंटिंग एक चिकित्सा प्रक्रिया है, जिसमें भोजन की नली में एक पतला, लचीला स्टेंट डाला जाता है ताकि वह संकुचन या रुकावट की स्थिति में भी खुला रह सके। यह तकनीक विशेष रूप से उन मरीजों के लिए जीवनरक्षक साबित हो सकती है जिन्हें भोजन निगलने में कठिनाई हो या जिनकी नली में ट्यूमर या चोट के कारण रुकावट हो। इस पर बताते हुए, नारायणा हॉस्पिटल, जयपुर के गैस्ट्रोएंट्रोलॉजी कंसलटेंट डॉ.अभिनव गुप्ता कहते हैं कि इसोफेगल स्टेंटिंग न सिर्फ भोजन निगलने में सहूलियत देती है, बल्कि कुछ जटिल मामलों में यह जान बचाने वाली भी हो सकती है। भोजन की नली में रुकावट या संकुचन के कई कारण हो सकते हैं, जैसे: इसोफेगल का कैंसर, स्कार टिशू फाइब्रोसिस के कारण सिकुड़न, चोट या अन्य चिकित्सीय जटिलताएं।नारायणा हॉस्पिटल, जयपुर में हाल ही में 90 साल के बुज़ुर्ग को बार-बार निमोनिया होने की वजह से इमरजेंसी में भर्ती करना पड़ता था। उन्हें सांस लेने में बहुत ज्यादा तकलीफ हो रही थी, जब उनकी एंडोस्कोपी की गई, तो पता चला कि उनकी भोजन नली में कैंसर है। 

जिस वजह से भोजन नली में एक छेद हो गया था, जो फेफड़ों से जुड़ गया था। इसी कारण उन्हें बार-बार निमोनिया हो रहा था। इस मरीज के भोजन नली में एक स्टेंट डाला। स्टेंट की मदद से भोजन नली की रुकावट और छेद को बंद कर दिया गया। इसके बाद मरीज को वेंटिलेटर से हटा दिया गया और अब वे अपने मुँह से खाना खा पाते हैं।इसी तरह के एक मामले में 60 वर्षीय  महिला नारायणा जयपुर में जो की कीमो पर थी, इसोफेगल कैंसर से ग्रसित थी और काफी समय से वह सांस की समस्या, निगलने में कठिनाई और भूख कम लगना जैसे कई मुश्किलों का सामना कर रही थी। एंडोस्कोपी की जांच में भोजन नाली काफी सुकड़ पाई गयी और हमने इसमें इसोफेगल स्टेंटिंग करके मरीज़ को भोजन नली को ठीक किया गया, साथ ही खाने की नली में जो छेद था, वह स्टेंट की मदद से ढक भी कर दिया। अब वो कीमो या रेडिएशन थेरेपी फिर से ले सकती है। इन परिस्थितियों में, वह दोनों मरीज अब आराम से खाना और तरल पदार्थ ले पा रहे हैं, और खाने की नली में जो छेद था, वह स्टेंट की मदद से ढक गया है, जिससे फेफड़ों में बार-बार इंफेक्शन और निमोनिया की समस्या भी समाप्त हो गई है।डॉ. गुप्ता के मुताबिक, यह केस बताता है कि कैसे सही समय पर की गई स्टेंटिंग एक बुज़ुर्ग मरीज़ के लिए लाइफ-सेविंग साबित हो सकती है।नारायणा हॉस्पिटल, जयपुर के गैस्ट्रोएंट्रोलॉजी कंसलटेंट डॉ. अभिनव गुप्ता कहते हैं कि इसोफेगल स्टेंटिंग से यदि फेफड़ों और नली के बीच असामान्य संपर्क हो तो स्टेंट से उसे बंद किया जा सकता है। इसोफेगल स्टेंटिंग आज की आधुनिक गैस्ट्रोएंट्रोलॉजी में एक बहुमूल्य तकनीक बन चुकी है। न सिर्फ यह मरीजों की दैनिक जीवन की समस्याएं हल करती है, बल्कि कुछ मामलों में यह उनकी जान भी बचा सकती है।

टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

सिंधी काउंसिल ऑफ इंडिया से निलंबित पूर्व अध्यक्ष एस.कुमार ने गैर कानूनी तरिके से किया सिंधी काउंसिल ऑफ इंडिया का विस्तार, जल्द होगी कानूनी कार्यवाही

दुबई में सोनाली बुधरानी बनीं हॉटमॉंड मिसेज इंडिया वर्ल्डवाइड 2025 की विजेता

श्रीमती ज्योति बनी सिंधी काउंसिल ऑफ इंडिया टोरंटो चैप्टर की अध्यक्षा