जश्न-ए-रेख्ता 2025 का दूसरा दिन-उर्दू भाषा, कविता और अदबी फनून का शानदार उत्सव

शब्दवाणी सम्माचार टीवी, सोमवार 8 दिसंबर 2025 (प्रबंध सम्पादकीय श्री अशोक लालवानी 8803818844), नई दिल्ली। जश्न-ए-रेख्ता 2025 के दूसरे दिन का आगाज़ उर्दू की तहज़ीबी रौशनी और अदबी विरासत के दिलकश अंदाज़ में हुआ। हजारों शायरी-प्रेमियों और अदब के चाहने वालों ने इस दिन में शामिल नाटकों, मुशायरों, संगीत और साहित्यिक बातचीत का भरपूर लुत्फ़ उठाया। यह दिन एक बार फिर साबित कर गया कि जश्न-ए-रेख्ता दुनिया का सबसे बड़ा उर्दू उत्सव है जो भाषा और अभिव्यक्ति की खूबसूरती को अद्वितीय अंदाज़ में पेश करता है। दिन की शुरुआत एक मार्मिक नाटकीय प्रस्तुति हुए मर के हम जो रुसवा से हुई। यह नाटक महान शायर मिर्ज़ा ग़ालिब के आख़िरी दिन की दास्तान को पेश करता है जिसे शेखर सुमन ने बेहतरीन अंदाज़ में निभाया। इसी दौरान सुखन-ज़ार में एक रेख्ता नशिस्त आयोजित हुई। उसके बाद बज़्म-ए-ख़याल के तहत “रस्म-उल-ख़त का मसअला” विषय पर एक रोचक चर्चा हुई, जिसमें उर्दू, देवनागरी और रोमन लिपि की चुनौतियों पर बात हुई।

शायरी के चाहने वालों को दोपहर में एक यादगार रेख्ता मुशायरा नसीब हुआ। जिसमें वसीम बरेलवी, जावेद अख्तर, विजेंद्र सिंह परवाज़, हिलाल फ़रीद, शारिक कैफ़ी समेत कई नामचीन शायरों ने अपनी खूबसूरत ग़ज़लें और कविता सुनाकर महफ़िल को रोशन कर दिया। थिएटर प्रेमियों के लिए नाटक एक लम्हा ज़िंदगी ए लव स्टोरी 1938–1979 की प्रस्तुति आकर्षण का केंद्र रही। नादिरा ज़हीर बाबर, नूर ज़हीर और जूही बाबर सोनी द्वारा लिखे गए इस नाटक को जूही ने खुद मंच पर पेश किया। प्रेम, इंक़लाब और फ़नकाराना जज़्बे से भरी इस कहानी ने दर्शकों को गहराई से प्रभावित किया। इसी के साथ रंग-ए-ज़ायका सत्र में सुनीता कोहली, शीबा जैराजपुरी और राणा सफ़वी ने अनुभव सपरा के साथ भारत की पाक-परंपराओं और खानपान की विरासत पर दिलचस्प बातचीत की। शाम ढलते ही महफ़िल में सूफ़ियाना रंग घुल गया जब ध्रुव सांगरी ने क़व्वालियों की रूहानी पेशकश की। इसके बाद दो किताबों का शानदार लोकार्पण हुआ शारिक कैफ़ी की मेरा कहा हुआ जिसका अनावरण फ़रहत एहसास और ख़ालिद जावेद ने किया और वसीम बरेलवी की “मोहब्बत न समझ होती है”, जिसका विमोचन ख़लील-उर-रहमान ने किया।

दिन का आख़िरी हिस्सा दास्तानगो दानिश हुसैन की मोहक दास्तानगोई से शुरू हुआ जिसमें उर्दू भाषा और साहित्य के इतिहास को ज़िंदा अंदाज़ में बयान किया गया। इसके बाद सलीम–सुलेमान के शानदार संगीत कार्यक्रम ने माहौल को और रंगीन कर दिया। रात का शानदार समापन “रंग और नूर – उर्दू शायरों के फ़िल्मी शाहकार” कार्यक्रम से हुआ, जिसमें उर्दू के सुनहरे सिनेमाई दौर को संगीत, नृत्य और कहानी के ज़रिये खूबसूरती से पेश किया गया। जश्न-ए-रेख्ता का दूसरा दिन उर्दू की ख़ूबसूरती, उसकी नज़ाकत और उसकी रूहानी विरासत का बेहतरीन जश्न साबित हुआ, जिसने दर्शकों को प्रेरित, भावुक और आने वाले कार्यक्रमों के लिए उत्सुक कर दिया।

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