शिक्षक हित को समर्पित मेरा जीवन : ललिता अध्यापक
शब्दवाणी सम्माचार टीवी, बुधवार 3 दिसंबर 2025 (प्रबंध सम्पादकीय श्री अशोक लालवानी 8803818844), नई दिल्ली। शक्ति संगठन में होती है किसी व्यक्ति में नहीं, प्रगतिशील शिक्षक न्याय मंच ने मान सम्मान अवसर दिया नारी को यह जीएसटीए के इतिहास में आधी आबादी को जो सम्मान दिया है यह तारिख में दर्ज़ होगा। मै आज उपध्यक्ष पद पर चुनाव लड़ रही हूँ जीत हार से पहले ही जो भरोसा मुझ पर मेरे मंच ने महिला मोर्चा अध्यक्ष बना कर किया है यह पहली बार हुआ है महिला संख्या बल में अधिक है पर नुमाइंदगी में शून्य थी इस जीरो को हीरो बनाने का चुनाव है इस बार। मै मानती हूँ कोई जाति कोई धर्म माजहब पहचान मान सम्मान अध्यापक से बड़ा हो ही नहीं सकता। शिक्षक समाज का दर्पण है, समाज के रूप स्वरूप को आकार देने का भारसदैव शिक्षकों के कंधों पर ही रहा है। उम्मीद और भरोसा दोनों ही शिक्षक की ओर निहारते हैं सच कहा है आचार्य चाणक्य ने "प्रलय और निर्माण अध्यापक की गोद में पलते हैं"। बेहतर भविष्य असरदार समाज सुदृढ़राष्ट्र के लिए संपूर्ण समर्पण कर शिक्षक बुलंद भारत की मजबूत बुनियाद रखता है। इस बुनियाद का आधार जाती-पत्नी धर्म मजहब ऊच नीच से ऊपर होगा तभी शानदार असरदारभव्य दिव्य भारत का निर्माण होगा।
ललिता के साथ अध्यापक जोड़ना मेरे लिए गौरव अलंकरण सम है। मेरे जीवन का मै धन्य और स्वयं को सौभाग्यशाली मानती हूंकी अध्यापक मेरी पहचान है। यही मेरे जीवन का वरदान है यही बनना मेरा अरमान था। पीड़ा होती है जब देश के दिल दिल्ली में अध्यापकों की दुर्गति देखती हूं उनकी पीड़ा वेदना को देख कर सिहर उठती हूं।जहां अध्यापकों पर चाकू चलाये गए, लाठी डंडो से पीटे गए लात घुसे बरसाए गए आज समाज का कवच ही असुरक्षित है। उस पर दुःखद ये की आवाज उठाने वाला कोई नहीं।अध्यापक हूं अध्यापक की आवाज नहीं बनी तो फिर कर ही क्या रही हूँ बस सांस ले रही हूं, घर परिवार पाल रही हूं रोज स्कूल आ रही हूं वापस लौट कर जा रही हूं। काश अध्यापकों की यूनियन मजबूत होती तो शिक्षक मजबूर और मजदूर नहीं होता। हमारी दुर्गति कुर्सी के लालचियों के कारण है चुनाव लड़ने का फैसला भी इसी कारण करना पड़ा। एक ही ध्येय वाक्य सलाह नहीं देना सहयोग करना साथ देना सम्मिलित होना जिम्मेदारी हिस्सेदारी साझेदारी करनी है। अध्यापक हित ही जीवन का ध्येय है, मुझे मेरी मंजिल मेरा मकसद शिक्षकों की सेवा में समाहित नजर आता है। आसान तो नहीं है चुनाव की चुनौती खासकर एक महिला के लिए सच यह राह आसान होती तो 46 साल के इतिहास में कोई ना कोई महिला जरूर बड़े पद पर अब तक आसीन हो जाती। उसे मौका ही नहीं दिया गया, यह मान लिया गया वह कमजोर है उसमें लड़ने की का साहस नहीं है। इस सोच इस परिपाटी को बदलने के लिए मैंने चुनावी दरवाजा खटखटाया और अध्यापकों का अधिकार उनके साथ सहयोग मांगा है। नारी के लिए अब तक बंद जीएसटी का कपाट खुलेगा और एक कुर्सी नारी के नाम की होगी। जहाँ कभी कोई बहन नहीं आई आज तक अब बेखौफ आकर बहने अपने हक अधिकार की बात कर सकेंगी, कह सकेंगी।
महिला घर परिवार पति बच्चे समाज सबके लिए उत्तरदाई है खुद के लिए ही समय नहीं है मैं जानती हूं, उसकी बेबसी को मजबूरी को पर मैंने इस दायरे को पार कर खुद को झोंक दिया है अपने अध्यापक बिरादरी के नाम पर। भरोसा है अध्यापक अध्यापक को हारने नहीं देगा अध्यापक अध्यापक का साथ देगा, अध्यापक अध्यापक के साथ मिल नया इतिहास रचेगा। मेरी ताकत महिला होना है मैं नारी हूं और नारी शक्ति से ज्यादा ताकतवर भला और कौन हो सकता है? हम सीता, सावित्री, दुर्गा, काली, इंदिरा,सावित्री बाई फुले, सोफिया, मल्लेश्वरी, कुंजू रानी मैरीकाम है। बस आवश्यकता है खुद को पहचान खुद को आगे बढ़ाने खुद के सम्मान खुद के हक अधिकार के लिए आवाज उठाने की। मेरी आवाज मेरे मुद्दे मेरे अध्यापक परिवार को समर्पित है जब उनके उदास चेहरों को देखती हूँ तो लड़ने की ऊर्जा का संचार होता है थकान भाग जाती है आशा की किरण फूट पड़ती है, और संकल्प याद आता है अध्यापक हूं अध्यापक का कर्ज़ चुकाना है। परिश्रम की पराकाष्ठा से नये इतिहास को रचना है इस संकल्प को विकल्प बना आगे बढ़ रही हूं। अपार समर्थन मेरे साथ है, यह जीत नारी शक्ति शिक्षा के पुजारी अध्यापक साथियों की होगी मैं तो माध्यम मात्र हूँ जीतेगा तो अध्यापक बस अध्यापक की जीत के लिए ही यह लड़ाई लड़ रही हूं। खुशी है दिल्ली के हर कोने से भाई बहन साथ दे रहे हैं साथ आ रहे हैं सराह भरोसा बन रहे हैं।



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