डिसएबिलिटी सर्टिफिकेट का बड़ा घोटाला?

यूपीपीसीएस–यूपीएससी उम्मीदवार के 0% से 67.84% तक चार आंकड़े, कई एजेंसियां अब जांच में जुटीं

हाईकोर्ट के आदेश पर तीन शीर्ष संस्थानों के ज्वाइंट मेडिकल बोर्ड से होगी दोबारा जांच, जो वास्तविक दिव्यांगता पर लेगा फैसला

शब्दवाणी सम्माचार टीवी, मंगलवार 9 दिसंबर 2025 (प्रबंध सम्पादकीय श्री अशोक लालवानी 8803818844), नई दिल्ली। दिल्ली हाईकोर्ट में एक ऐसा मामला सामने आया है, जिसने केंद्रीय व राज्य स्तरीय भर्ती प्रक्रियाओं की पारदर्शिता पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं। मामला यूपीपीसीएस-2019 और यूपीएससी सीएसई-2024 में पीडब्ल्यूबीडी – पर्सन्स विथ बेंचमार्क डिसएबिलिटी कोटे से चयनित शुभम अग्रवाल से जुड़ा है। आरोप है कि उम्मीदवार ने छेड़छाड़ या फर्जीवाड़े से तैयार किए गए डिसएबिलिटी सर्टिफिकेट्स के आधार पर दिव्यांग कोटे का लाभ उठाया, जबकि शीर्ष राष्ट्रीय अस्पतालों की मेडिकल रिपोर्ट उसे बार-बार अयोग्य बताती रही हैं। दिल्ली हाईकोर्ट के संज्ञान में आने के बाद यह मामला केंद्र, राज्य और विजिलेंस एजेंसियों तक पहुंच चुका है। जस्टिस नवीन चावला और जस्टिस मधु जैन की बेंच ने यूपीएससी सीएसई-2024 के पीडब्ल्यूबीडी कोटे में चयन पाने वाले शुभम अग्रवाल की दिव्यांगता को लेकर सामने आई भारी विसंगतियों पर बड़ा आदेश दिया है। बेंच ने जीटीबी हॉस्पिटल, सीजीएचएस और दीन दयाल अस्पताल के विशेषज्ञ डॉक्टरों का ज्वाइंट मेडिकल बोर्ड बनाने का निर्देश दिया है, जो उम्मीदवार की वास्तविक दिव्यांगता पर अंतिम फैसला करेगा।

शुभम अग्रवाल ने कैट – सेंट्रल एडमिनिस्ट्रेटिव ट्रिब्यूनल के उस दिशा-निर्देश को हाईकोर्ट में चुनौती दी थी, जिसमें CAT ने अपीलेट बोर्ड की रिपोर्ट को देखते हुए उम्मीदवार को ट्रेनिंग शुरू करने की सशर्त अनुमति दी, लेकिन साथ ही तीसरी मेडिकल एग्ज़ामिनेशन का निर्देश भी दिया। कोर्ट ने कहा 1% बनाम 67.84% ‘साधारण अंतर नहीं जांच दोबारा जरूरी जस्टिस नवीन चावला और जस्टिस मधु जैन की बेंच ने कहा कि यह मामला सिर्फ मेडिकल राय का अंतर नहीं बल्कि “हाई-मैग्नीट्यूड डिस्क्रेपेंसी” का मामला है। AIIMS (एम्स) की 1% रिपोर्ट और अपीलेट बोर्ड की 67.84% रिपोर्ट में असामान्य असमानता है। साथ ही, उम्मीदवार द्वारा पूर्व में प्रस्तुत प्रमाणपत्रों में 40% और 44% तक के दावे भी सामने आए। इन तथ्यों के आधार पर अदालत ने CAT के आदेश को सही ठहराया और तीसरी मेडिकल जांच का रास्ता साफ किया। चार संस्थान, चार अलग आंकड़ 0% से 67.84% तक का अंतर गाजियाबाद और मेरठ के अधिकारियों द्वारा जारी किए गए सर्टिफिकेट्स में शुभम को 40% दिव्यांग (40% डिसेबिलिटी क्लेम) दिखाया गया है। मगर UPSC के निर्देश पर एम्स में 0%, आरएमएल में 1%, सफदरजंग हॉस्पिटल में 8.64% दिव्यांगता आंकी गई जो PwBD कोटे की न्यूनतम सीमा (40%) से काफी कम है।

मेडिकल बोर्ड ने उम्मीदवार की स्थिति को नॉन-प्रोग्रेसिव बताया है, यानी समय के साथ न बढ़ने वाली अवस्था। लेकिन वहीं यूपीपीसीएस में यही उम्मीदवार 40% विकलांगता के आधार पर नायब तहसीलदार पद पर नियुक्त है। ट्रेनिंग में शामिल होने का मुद्दा भी उठा उम्मीदवार ने कोर्ट को बताया कि CAT के आदेश के बावजूद उन्हें प्रशिक्षण में शामिल नहीं होने दिया गया। इस पर कोर्ट ने कहा कि यह मुद्दा CAT स्वयं तय करेगा। कोर्ट में यूपीएससी का बयान – “उम्मीदवार कई बार मेडिकल एग्ज़ामिनेशन से हुआ गायब”

UPSC की ओर से दाखिल जवाब में बताया गया कि शुभम अग्रवाल पिछले कई वर्षों विशेषकर 2017 से 2024 तक बार-बार मेडिकल परीक्षण के निर्धारित दिनों पर अनुपस्थित होता रहा है। हर बार उसे PwBD कैटेगरी के लिए इनएलिजिबल पाया गया, लेकिन उम्मीदवार बाहरी सर्टिफिकेट्स के जरिए दिव्यांगता का दावा करता रहा। सबसे बड़ा सवाल—“जब केंद्रीय अस्पताल अयोग्य बताते रहे, तो UP Govt (यूपी सरकार) में दिव्यांग कोटे पर नौकरी कैसे?

शिकायतकर्ता आशीष गुप्ता ने पूछा कि जब राष्ट्रीय अस्पतालों की रिपोर्ट बार-बार न्यूनतम 40% की सीमा से नीचे थीं तब UP Govt (उत्तर प्रदेश सरकार) में 2021 में Tehsildar पद पर PwBD कोटे से नियुक्ति कैसे हुई? यह सवाल भर्ती, सत्यापन और चयन प्रक्रिया में गंभीर खामियाँ उजागर करता है। परिवार की गवाही ने बढ़ाई शंका हमारे परिवार में कोई दिव्यांग नहीं सेशंस ट्रायल नंबर 679/2023 के दौरान शुभम के भाई अर्पित अग्रवाल ने अदालत में कहा हमारे परिवार में कोई दिव्यांग व्यक्ति नहीं है। यह बयान UPSC/UPPCS में जमा किए गए दिव्यांगता सर्टिफिकेट्स के बिल्कुल विपरीत है। यह पब्लिक इंटरेस्ट का मुद्दा है, कोई निजी विवाद नहीं शिकायतकर्ता ने कहा कि उनकी शिकायत पूरी तरह जनहित में है, ताकि यूपीएससी-यूपीपीएससी की पारदर्शिता बनी रहे, PwBD कोटे का दुरुपयोग न हो, वास्तविक दिव्यांग उम्मीदवारों का हक सुरक्षित रहे। 

क्या कार्रवाई मांगी गई है? याचिकाकर्ता ने कोर्ट से अनुरोध किया सभी डिसएबिलिटी सर्टिफिकेट्स की सत्यता की जांच, सभी मेडिकल फॉरेंसिक ऑडिट, फर्जीवाड़ा मिलने पर कानूनी कार्रवाई, UP Govt में तैनात उम्मीदवार का  इमीडिएट सस्पेंशन, संबंधित एजेंसियों को रिपोर्ट भेजने का निर्देश मामला अब शीर्ष संस्थाओं तक पहुंचा जांच कर रहे संस्थान यूपीएससी, डीओपीटी (डिपार्टमेंट ऑफ पर्सोनेल एंड ट्रेनिंग), यूपीपीएससी, डीएम मेरठ, सीएमओ गाजियाबाद, सीवीसी (सेंट्रल विजिलेंस कमीशन) हाईकोर्ट ने कहा कि इतनी बड़ी विसंगतियों को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता।

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